Monday, October 25, 2010

क्या? फिर आया है करवाचौथ!

क्या? फिर आया है करवाचौथ!
हे परमेश्वर! फिर लायेंगे ये एक सौत!

मैं हूँ एक सुहागिन नारी,
पहली अभी कवांरी,
और तीसरी की लाने की-
वो रही दुखद तैयारी,
हे भगवान् आती मुझे नहीं क्यूँ मौत? 
हे परमेश्वर! फिर लायेंगे ये एक सौत!
फिर आया है करवाचौथ!

मेरे व्रत-उपवास न उनको भाते-
जब भी घर को आते-
मुझको धकियाते-गरियाते,
उसे देख मुस्काते आते-जाते.
नहीं समझ में आता वो मेरी है सौत-
या मैं उसकी सौत.
हे परमेश्वर! फिर लायेंगे ये एक सौत!
फिर आया है करवाचौथ!

जब से लिविंग रिलेशन आया-
उन्हें मिल गयी पूरी छूट.
फर्क न उनको पड़ता कोई,
चाहे मैं जाऊं फिर रूठ,
अब जाना क्यूँ पहने फिरते-
नित नए-नए वो शूट.
मैं क्यूँ मर जाऊं-
मरे हमारी दोनों सौत.
हे परमेश्वर! फिर लायेंगे ये एक सौत!
फिर आया है करवाचौथ!

3 comments:

GyanTreeSpeaks said...

मित्र
महा बकवास .. कोरी तुकबंदी के अलावा कुछ भी नहीं | इसे कविता तो नहीं ही कह सकते |

Shishupal Prajapati said...

प्रिय आलोचक मित्र!
मुझ नौशिखिया जो अपने को कविता लिखने वाला कहता है की तरफ से आपको सादर नमस्कार है!
महोदय, यदि आप जैसा आलोचक मेरी कविता पढता है और अपने विचार मेरे ब्लॉग पर पोस्ट करता है तो मेरा लिखना व्यर्थ नहीं है.
भविष्य में अच्छा लिखने की कोशिश करूंगा. ऐसे ही आप अपनी कृपा बनायें रखना. इसी आशा से एक बार आपका पुनः वंदन-अभिनन्दन है!
आपका
'शिशु'

Anonymous said...

Sorry for my bad english. Thank you so much for your good post. Your post helped me in my college assignment, If you can provide me more details please email me.

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