Tuesday, August 22, 2017

ज़िन्दगी का नहीं कोई आधार है...

ज़िन्दगी का नहीं कोई आधार है,
गप्पबाज़ी यहाँ अब धुआँधार है।...

झूठ बोलूं न क्यों अब ज़रूरत है ये,
सत्य का आजकल फ़ीका बाज़ार है।

जो गरजते थे कल वो बरसने लगे।
बादलों का लगा देखो अम्बार है।।

शाम से इस शहर में रह भीगता,
सर छुपाने का कोई न आसार है।

मेरे हमदर्द कबसे हैं रूठे 'शिशु',
डाकबाबू न लाया कोई तार है।।

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