दीवाली के दीप जलें चहुं ओर रोशनी छा जाये
मन मांगी मुराद सबको पावन अवसर पर मिल जाये
पहले दीवाली कैसी थी इसका कुछ मैं वर्णन कर दूं
जी चाह रहा है इसी तरह मन को अपने हलका कर लूँ?
याद आ गये बचपन के दिन
छुटपन के दिन, खुशियों के दिन
कभी पटाके नहीं जलाये क्येकि मुझे डर लगता था
अभी मिठाई अभी मिलेगी हरपल ऐसा लगता था।
यार दोस्त सब मिलजुल कर हम खेल खेलते सुबहो शाम
करते थे ना कोई काम, करते थे ना कोई काम,
गुल्ली-डंडा खूब खेलते, सांझ सुबह का ख्याल नहीं
अम्मा डंडा लेकर आये, बापू की परवाह नहीं
इस प्रकार दिन कट जाते थे, जब तक खुलते स्कूल नहीं
फिर हो जाती थी तैयारी पढ़ने की क्योंकि दिसम्बर दूर नही।
अब दीवाली कहां रही इस बार दीवाला हो ही गया।
यह देश कहां से कहां गया, सेंसेक्स कहां से कहा गया।
अब खेल को गेम बोलते हैं, उसका ही सारा चक्कर है
जो जीत गया वो जीत गया जो हार गया वो कहां गया?
अब शोर-शराबा है ऐसा,
डर लगता है कैसा-कैसा
कहीं पटाके और अनार में कोई बम ना आ जाये
इस हंसती-खिलती दीवाली में मातम फिर ना छा जाये
प्रभु ऐसा उपाय कर दो,
रोशन जग पूरा कर दो
'शिशु' की यही कामना है,
दूजी नहीं ‘भावना’ है।
प्रभु फिर से तुम आ जाओ
किसी वेश में किसी वेश में,
फर्क न पड़ता किसी देश में
इस जग का उद्धार करो
जीवन नैया पार करो
सुख-शान्ति चहुं ओर बिखेरो
सपने सबके खूब उकेरो
मनोकामना पूरी हो
अधंकार से दूरी हो
और रोशनी छा जाये
चहुँदिश खुशियाँ आ जायें।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
-
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है! बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है!! आँख में दरिया है सबके दिल में है सबके पहाड़ आदमी भूगो...
-
तुम कहते हो, तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं है, अफसोस? मेरे दोस्त, इस शेखी में दम नहीं है जो शामिल होता है फर्ज की लड़ाई मे, जिस बहादुर लड़ते ही हैं...
-
हमने स्कूल के दिनों में एक दोहा पढ़ा था। जो इस प्रकार था- धन यदि गया, गया नहीं कुछ भी, स्वास्थ्य गये कुछ जाता है सदाचार यदि गया मनुज का सब कु...
-
जिला हरदोई से डाभा गाँव जाने के लिए बस के बाद ऑटो करना पड़ता है. इस गाँव के निवासी उम्दा कहानीकार के साथ ही साथ कहावतें, किदवंक्तियाँ, कही-स...
-
एक परमानेंट प्रेगनेंट औरत से जब नहीं गया रहा, तो उसने भगवान् से कर-जोड़ कर कहा- भगवान् मुझे अब और बच्चे नहीं चाहिए, बच्चे भगवान् की देन ह...
-
भाँग, धतूरा, गाँजा है, माचिस, बीड़ी-बंडल भी। चिलम, जटाएँ, डमरू है, कर में लिए कमंडल भी।। गंगाजल की चाहत में क्यूँ होते हलकान 'शिश...
-
इंतज़ार है पक्का शत्रु, उस पर कर न यकीन जीना शान से चाह रहे तो ख़ुद को समझ न दीन ख़ुद को समझ न दीन काम कल पर ना छोड़ो लगन से करके काम दाम फल स...
-
पाला पड़ा गपोड़ों से। डर लग रहा थपेड़ों से।। अर्थव्यवस्था पटरी पर आई चाय पकौड़ों से। बच्चे बिलखें कलुआ के, राहत बँटी करोड़ों से। जी...
-
रंग हमारा हरेरे की तरह है. तुमने समझा इसे अँधेरे की तरह है. करतूतें उनकी उजागर हो गई हैं, लिपट रहे जो लभेरे की तरह हैं. ज़िंदगी अस्त व्यस्त ...
-
नौकरी के नौ काम दसवां काम हाँ हजूरी फिर भी मिलती नही मजूरी पूरी मिलती नही मजूरी जीना भी तो बहुत जरूरी इसीलिये कहते हैं भइया कम करो बस यही जर...
Modern ideology
I can confidently say that religion has never been an issue in our village. Over the past 10 years, however, there have been a few changes...
-
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है! बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है!! आँख में दरिया है सबके दिल में है सबके पहाड़ आदमी भूगो...
-
तुम कहते हो, तुम्हारा कोई दुश्मन नहीं है, अफसोस? मेरे दोस्त, इस शेखी में दम नहीं है जो शामिल होता है फर्ज की लड़ाई मे, जिस बहादुर लड़ते ही हैं...
-
हमने स्कूल के दिनों में एक दोहा पढ़ा था। जो इस प्रकार था- धन यदि गया, गया नहीं कुछ भी, स्वास्थ्य गये कुछ जाता है सदाचार यदि गया मनुज का सब कु...
2 comments:
Achhi bhavnayen.achhi kavita. Deepavali ke deepakon ka prakash aapke jeevan men hamesha khushiyon ki jagmagahat bhar de.
यद् दिलाया उन बचपन की दिवाली का जो बहूत दिनों से हम भूल गए थे |
बहूत अच्छे कवि शिशुपाल "खिलाड़ी"
Post a Comment