चार दिनों से घंटी वाली मीटिंग में था भाई
इसीलिये मन की बातें ना ब्लॉग में हैं कह पाई
घंटी से होती शुरुआत घंटी बजी तो होती रात
घंटी बजते खाना होता घंटी बज जाती तो बात
घंटी वो भी देशी ना थी इसीलिये बैठना जरूरी
कुछ तो अपने मन से बोले कुछ लोगों की थी मजबूरी
घंटी घंटों के हिसाब से अपना काम कराती
जैसे ही कुछ देर करी तो घंटी थी बज जाती
घंटी बोली कार्यालय को रखो व्यवस्थित हर दम
हर मैनुअल को स्वयं बनाओ करो सुचारू हर दम
इस घंटी वाली मीटिंग में कुछ बड़बोले आते
बात सही थी पता ना उनको पर बोले ही जाते
'शिशु' का मकसद था बस इतना आपको यह बतलाऊं
रहा कंहा इतने दिन तक मै सच - सच बात बताऊँ
1 comment:
वाह-वाह जी वाह!
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