उम्र हुई आँखों का सागर सूख गया ,
अब जाकर बेदर्द समझने आया है ।
अब जाकर बेदर्द समझने आया है ।
फूल कली में अन्तर समझ न पाया जो,
जाने क्या नामर्द समझने आया है ?
जाने क्या नामर्द समझने आया है ?
बातों मे है शहद और तन पर खादी,
बनकर दहशतगर्द समझने आया है ।
बनकर दहशतगर्द समझने आया है ।
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