Saturday, November 29, 2008

दफ़न न होते आज़ादी पर मरने वाले

दफ़न न होते आज़ादी पर मरने वाले,
पैदा करते हैं मुक्ति बीज,
फिर और बीज पैदा करने को,
जिसे ले जाती हवा दूर,
और फिर बोती है,
और जिसे पोषित करते हैं
वर्षा, जल और हिम!
देहमुक्त जो हुआ,
आत्मा उसे न कर सके विछ्न्न,
अस्त्र - शस्त्र अत्याचारों के,
बल्कि हो अजेय रमती धरती पर,
मर्मर करती बतियाती चौकस करती !!
(यह कविता भगत सिंह की आत्मकथा में संगृहीत है )

3 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

मैं नमन करती हूं उन सभी शहीदों को जिन्होंने हमारी सुख शान्ति के लिये अपनी जान की बाजी लगायी है।

परमजीत सिहँ बाली said...

bahut badhiyaa rachanaa preshit ki hai.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

very good. narayan narayan

Popular Posts

Internship

After learning typing from Hardoi and completing my graduation, I went to Meerut with the enthusiasm that I would get a job easily in a priv...