बलई।
बात तब की है जब बैलगाड़ी से बारात जाती थी। राजेन्द्र चाचा के मझले भाई वीरेंद्र चाचा की बारात के लिए मेरे पिताजी हमारे बैलों के सींग रंग चुके थे और बैलों के गले में घुंघरू बाँध रहे थे कि बलई आ गए, वे अपने लहड़ुआ के ऑंगन के लिए सन और डीज़ल लेने आए थे। तब मुझे पता चला कि ये तैयारी बारात के लिए चल रही है तभी मैं भी जिद कर बैठा। पिताजी ने लाख समझाया तुम बहुत छोटे हो नहीं ले जा सकता लेकिन बलई ने कहा क्या चाचा ले चलो मेरे छोटे भाई को। बलई बहुत ही मेहनती ग़रीब किसान का बेटा था। लोग उससे खूब रमूज करते थे। बहुत हँसमुख और जी तोड़ मेहनत करने वाला लड़का था। उनके पिता रामदास चाचा के बड़े भाई थे। गोरा रंग, करीब 6 फ़ीट लंबाई के हल्के शरीर के व्यक्ति थे। जबकि बलई उनकी तुलना में बहुत कम लंबाई के थे।
उन दिनों बारात में गांव में अक्सर सभी जातियों के लोग बारात में जाते थे। इसके दो कारण थे, एक कि बारात ले जाने के लिए बैलगाड़ी और लहड़ुआ ही संसाधन था दूसरा उस समय भले ही लोग जातिगत थे लेकिन वे सामाजिक थे। हर जाति के लोग एक दूसरे को बारात में चलने के लिए आमंत्रित करते थे, जबकि उस समय तो राजेन्द्र चाचा से हमारे घरेलू संबंध थे। मेरे पिताजी उनका बटाई खेत करते थे। मेरे पिताजी और राजेंद्र चाचा की गाढ़ी दोस्ती थी। वे खाना अपने घर खाते थे और पानी मेरे घर, वैसे ही जैसे किसी समय मेरी और इंद्रभूषण (अस्पताली) की दोस्ती थी। बारात दोपहर को रवाना हुई। खूब रोनेधोने के बाद पिताजी मुझे ले जाने के लिए तैयार हो गए।
बारात मल्लावां के पास अकबरपुर के लिए प्रस्थान हुई। रास्ते में बैलगाड़ी दौड़ की खूब होड़ लगी। मेरे घर में बड़े बड़े और दमदार बैलों की जोड़ी थी। खूब मजा आया और लहड़ुआ दौड़ में जीत बलई की जोड़ी की हुई। तब बारात में एक दिन पक्का खाना और दूसरे दिन कच्चा खाना बनाया जाता था। बारात में ख़ूब आवभगत हुई। बारात बाग में ठहराई गई थी, जहाँ कुआं था। ख़ूब हंसी मजाक, नाच गाना हुआ। लेकिन अगले दिन एक अजीब घटना हो गई। हंसी हंसी में किसी ने बलई के ऊपर खजोहरा (खुजली करने वाली जंगली पत्ती) डाल दी। वो बेचारे खूब खुजलाते, जबकि लोग ठहाके लगाकर खूब हंसते। तब इतनी समझ न थी वरना लोगों से कहता क्या मजाक है किसी की जान जा रही है और आप हंस रहे हैं लेकिन ख़ैर। मुझे बड़ा दुख हो रहा था। कोई जनवासे से आटा लेकर आया उसका उपटन लगाकर मला लेकिन फ़ायदा न हुआ। कुंवें पर खूब रगड़ रगड़ कर नहाया। लेकिन खुजली जाने का नाम न ले रही थी। बड़ी मुसीबत आ गई। किसी ने कहा खटाई लगाओ, तिल्ली का तेल लगाया लेकिन फायदा न हुआ। भगवान जाने कैसे ठीक हुई।
पिछली बार बलई के भाई से मुलाकात हुई तो उनसे बलई के बारे में पूछा तब सुनकर बड़ा दुःख हुआ बलई ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। कारण मैंने न पूछा। ऐसे अनेकों मेहनतकश मेरी यादों में बसे हैं। यादों यादों में आज उनकी याद आ गई। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।
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