आज एक पुरानी याद आ गई। हमारे समय प्राइमरी पाठशाला कुरसठ बुजुर्ग में पढ़ने वाले हर बच्चे की ये इच्छा होती थी कि स्कूल बंद होने की घंटी वे बजाएं। हर बच्चा समय से पहले तैयार रहता था, लेकिन समस्या ये थी कि तब घड़ी किसी-किसी अध्यापक के पास होती थी। आदरणीय मुरारीलाल दीक्षित जी हमारे प्रधानाचार्य थे। उनके हाथ में पीतल की एक घड़ी बंधी रहती थी। सफ़ेद ढीला कुर्ता पायजामा, ऐनक और वह पीतल की घड़ी उनके व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाती थी। उनके अलावा उस स्कूल में कुल पाँच अन्य अद्यापक भी थे, श्री सोबरन लाल जी, श्री अहिबरन जी, श्री पांडेय जी, श्री राठौर जी (जलिहापुर वाले) और श्री मूलचंद जी।
हमारी क्लास चबूतरे के नीचे नीम के पेड़ के नीचे लगती थी और पाँचवी कक्षा के बच्चों को विद्यालय के पक्के कमरे में बिठाया जाता था। वह घण्टी भी इसी कक्षा की शोभा बढाती थी। इसलिए उसे बजाने के ज़्यादा मौके पाँचवी कक्षा के बच्चों को ही मिलता था। लेकिन सर्दी के दिनों में उनकी क्लास भी चबूतरे पर लगती तब अन्य क्लास के बच्चों को भी मौका मिल जाता।
हमारी कक्षा के बच्चों ने घड़ी से मिलान करके दीवाल की परछाईं को एक निशान से सेट कर लिया था फिर क्या जैसे ही परछाई वहां आती उससे पहले ही बच्चे वहां जमा हो जाते और छीनाझपटी करके घंटी बजा देते। एक दिन घंटा समय से पहले ही बज गया। जैसे ही घंटी बजी सभी बच्चे धमाचौकड़ी मचाते हुए भाग खड़े हुए। बाद में पता चला कि दिन छोटे बड़े के चक्कर में परछाई ने अपना समय बदल दिया था...
आज हमारे मुहल्ले के एक शरारती लड़के ने भी यही कारस्तानी कर दी और साढ़े चार बजे ही थाली पीट दी, फिर क्या सभी लोग उसके सुर में सुन मिलाने लगे, किसी ने भी घड़ी देखने की जहमत न उठाई जबकि अब सबके घर में घड़ी, मोबाइल है तब।
अभी अभी ख़बर पढ़ी है कि, कई जगह कुछ देशभक्तों ने घण्टा बजाने की प्रशंसा में रैली निकाली है, सब गुड़ गोबर कर दिया। क्या कहें, हिंदुस्तान का आदमी घंटा नहीं सुधारने वाला मोदी जी कितनी ही घंटी बजवा लें!
#कोरोना #को_रोना
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