उल्लुओं ने चमन को रौंद डाला है।
चमन चमगादड़ों का बोलबाला है।।
दीप हमनें जलाए रोशनी ख़ातिर।
पटाखों से हुआ लेकिन उजाला है।।
मेरी कश्ती भवँर में अब फंसेगी क्या?
नदी है नहीं! वहाँ तो एक नाला है।।
दोष मुझमें नज़र आने लगे हैं अब।
बुराई को स्वयं में क्यों खंगाला है?
#नज़र_नज़र_का_फ़ेर #शिशु
No comments:
Post a Comment