कारिंदा ज़मीदार का इतना अधिक भक्त था कि, कई दफ़े तो ज़मीदार साहब के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
हुआ ये कि, एक शाम ज़मीदार ने अपनी बैठक से ही जोर से आवाज देकर उसे पुकारा। वह भागा-भागा, गिरते-पड़ते, जैसे-तैसे बैठक में पहुँचा।
ज़मीदार ने पूछा, 'क्या कर रहे थे?'
कारिंदा बोला, 'मालिक, मैं तो कुंवें से पानी भर रहा था'।
'फिर इतनी जल्दी कैसे आ गया?' ज़मीदार ने पूछा।
कारिंदें का उत्तर सुनकर ज़मीदार फूले न समाए और उसे नक़द पुरस्कार से नवाज़ा।
कारण जानकर आपको चक्कर आ जाएगा- हुआ ये कि, कारिंदा ज़मीदार को ख़ुश करने के चक्कर में उनका ही गगरा (पीतल का घड़ा) रस्सी सहित कुंवें में फेंक कर उनकी बात जो सुनने आ गया था।
...उसी तरह प्रजातांत्रिक सरकारों में भी मंत्रीजी जैसे ज़मीदार और अफ़सर जैसे कारिंदें अपना और उनका नाम रोशन करने में व्यस्त हैं।
इति कथा समाप्तम!😊
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