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ज़मीदारी का जमाना था। उस समय ज़मीदार के यहाँ हाँ हजूरी के लिए हरकारा या कारिंदा होता था, जो सताई जाने वाली प्रजा को ज़मीदार के इशारे पर बुलाकर लाती थी और यदि कोई काम न हुआ तो वे हुजूर के कान भरते। ऐसे ही किसी गाँव में एक ज़मीदार साहब के यहाँ एक कारिंदा था। वह मालिक की ख़ूब हाँ में हाँ मिलाता और उनकी झूठी तारीफ़ करके और अपना उल्लू सीधा करता।
एक साल उस गाँव में अनाज और चारे का भयंकर अकाल पड़ा। लोग त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे। बड़े से बड़े काश्तकारों के यहाँ जानवरों के लिए चारा न रहा। लेकिन ज़मीदार को कोई फ़िक्र न थी उनके यहाँ अनाज और चारे का उचित प्रबंध था।ज़मीदार ठहरे ज़मीदार उन्हें भला क्या फ़र्क पड़ता। लेकिन कारिंदा भी हलकान था। माघ, पूस का महीना था, कारिंदा ज़मीदार के चबूतरे पर जमा करब (जानवरों के लिए एक प्रकार का चारा तथा इसी की भुट्टे से ज्वार भी निकलती है) को उठाकर प्रतिदिन ले जाता और अपने जानवरों के लिए चारे का प्रबंध करता। इस प्रकार करब दिनोंदिन कम होने लगी। एक दिन ज़मीदार की नज़र पड़ी और उन्होनें कारिंदे से आखिर पूछ ही लिया, 'ये करब कम कैसे हो रही है।'
इससे पहले मालिक आगे और कुछ कहते कारिंदे ने तपाक से उत्तर दिया, 'मालिक करब कुत्ते उठाकर ले जा रहे हैं और वही खा रहे हैं।'
अच्छा, इन ज़मीदार महाशय ने न कभी खेत देखा और न ही खलिहान! इसलिए कारिंदें ने जो भी कहा उसे उस समय के लिए मान लिया। बात आई और गई...
एक दिन ज़मीदार साहब जब कारिंदे के साथ घूमने निकले तो देखा क्या कि, कुछ कुत्ते करब के ढेर में घुसकर सीसी खेल रहे हैं (इस खेल में 5 से 6 कुत्ते मिलकर एक दूसरे को दौड़ाते हैं, गुर्राते हैं, लेकिन एक दूसरे को काटते नहीं, केवल मौज मस्ती करते हैं)। कुत्ते करब को उठाकर धमाचौकड़ी कर रहे थे। कारिंदे ने ज़मीदार की तरफ इशारा करते हुए कहा, 'देखा मालिक कुत्ते करब खा रहे हैं।'
मालिक ने हाँ में हाँ मिलाया, और कारिंदे को उचित इनाम दिया।
आजकल इधर सरकार में भी कुछ कारिंदें हैं, वे भी हुजूर को खुश करने के लिए हाँ हजूरी में व्यस्त हैं...😊
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