आमलोग मंगल या शनिवार को मांस नहीं खाते और मंगल एवं शनिवार को मंदिर जाते हैं ताकि भगवान के सामने अपने कटु और पापी जीवन का रोना रोयें। और भगवान से क्षमा याचना कर सकें। आमतौर पर ये लोग व्रत रखते हैं। तांत्रिक या गुरू से पाप दूर करने के लिए शिक्षा लेते। प्रसाद बांटते। जबकि यही लोग लगातार उन लोगों के शरीर पर अत्याधिक काम का बोझ डालते और उनका खून चूसते जो सामान्य जीवन की पुष्टि और समृद्धि के लिए काम कर रहे होते हैं। सामान्य लोगों के पास पूर्वाग्रहों और अंधविश्वासों का अपना एक छोटा मगर पवित्र भंडार रहता है। आत्मरक्षा की इस समस्त सामग्री को भगवान और शैतान सारहीन विश्वास तथा मानव बुद्धि के प्रति कुंठित अविश्वास से जोड़ देते हैं।
दूसरी बात यह जो लोग देखने में भोलेनाथ लगते हैं उनका यह भोलापन ढोंग हो सकता है। जो उनकी बुद्धि के लिए परदे का काम करती है जिससे वे स्वयं सामान्य लोग जीवन में काम लेते हैं।
(यह कटु परिभाषा गोर्की के निबंध ‘लेखनकला और रचना कौशल’ से ली गयी है)
इस लेख से यदि किसी व्यक्ति की धार्मिक या व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को ठेंस लगाती है तो लेखक उसका जिम्मेदार नही है।