Sunday, November 4, 2018

त्यौहारों को मजहब में तुम, बाँट रहे हो भाई क्यूँ?

कम-से-कम शब्दों में, बात समझने वाले,
मुझसे बकवादी तुम, छाँट रहे हो भाई क्यूँ?

नफ़रत, हिंसा, मारपीट फैलाने वाले कौन?
मेरे प्रश्नों पर मुझको तुम, डांट रहे हो भाई क्यूँ?

जिनसे खुशियाँ मिलती हैं उन पर सबका हक,
त्यौहारों को मजहब में तुम, बाँट रहे हो भाई क्यूँ?

नेतानगरी खूब समझता, मुझको मत समझाओ!
उल्लू जन मानस का तुम, काट रहे हो भाई क्यूँ?

Monday, October 29, 2018

खुशी की कश्तियाँ मुझको अरे दे दो कोई लाकर।

बरसने की जरूरत थी, गरजने क्यों लगे आकर,
कोई आओ बताओ बादलों को बात ये जाकर।

मुसीबत में दुःखों के हर तरफ तूफ़ान दिखते हैं,
खुशी की कश्तियाँ मुझको अरे दे दो कोई लाकर।

वो पहने घूमता कुर्ता, दिलाया हमने उसको था,
हमारी नेकनियती की उसे कर दो खबर जाकर।

उसे करना था अच्छे काम उसको छोड़कर देखो,
लूटता अब खजाना है, गरीबों पर ज़ुलम ढाकर।

शहर केवल अमीरों का, गरीबों के लिए मुश्किल,
गुजारा कर रहे हमलोग, केवल रोटियाँ खाकर।।

Wednesday, October 24, 2018

रार, तक'रार और प्यार है पति-पत्नी की देन।

रार, तक'रार और प्यार है पति-पत्नी की देन।
फिर भी पत्नी पति की, पति पत्नी का फैन।!
पति ने कहा-
प्रिये मायके में तुम कुछ वक़्त गुजारो और।
मेरी चिंता मत करियो, यहाँ अमन सब ठौर।।
पत्नी ने भी पति को फिर भेज दिया संदेश!
दो घंटे में आ-जा सकती, रहती नहीं विदेश।।

हालात देश के ऐसे हैं, 'शिशुपाल' देख कर दंग।।

प्रमुख जजों में मनमुटाव है, सीबीआई में भी जंग।
हालात देश के ऐसे हैं, 'शिशुपाल' देख कर दंग।।
कोर कमेटी भंग हो गईं, जिम्मेदार न कोई है।
लगता है सरकार देश की ओढ़ रजाई सोई है।।
पाँच साल होने को हैं, लोकपाल का पता नहीं।
राजा बोल रहा जनता से मेरी कोई खता नहीं!!
अन्ना गायब, बाबा गायब, गायब सगरे नेता हैं।
मैं रैली में गया वहाँ था, कोई ख़बर न लेता है।।
आम आदमी पहले वाला, जूता मोजा धाँसे है।
दिल्ली की जनता को प्रतिदिन देता रहता झाँसे है।
सगरे: सभी
धाँसे: पहने

Thursday, October 18, 2018

छोटे घर में लोग बड़े दिल' वाले रहते हैं।

छोटे घर में लोग बड़े दिल' वाले रहते हैं।
अच्छे दिन आएंगें अरमां' पाले रहते हैं।।

भले अंधेरा घर में है पर औरों की खातिर,
घर के बाहर उनके सदा उजाल रहते हैं।

दरवाजे हैं खुले, भरोसा इतना चोरों पर,
कैद में घर के अंदर चाभी' ताले रहते हैं।।

आसमान को सकते जीत, इतना जज्बा है,
फिर भी पाँव आसमान के' खाले रहते हैं।।

Sunday, September 30, 2018

नज़र नज़र का फ़ेर, सबको कर दे ढेर।

नज़र नज़र का फ़ेर, सबको कर दे ढेर।😊

जिनने लूट अपना देश,
भाग गये परदेश।
बैंक आजकल खोज रहे,
बचे हुए अवशेष।।
😢
बैंक आधुनिक साहूकार,
अब चोर बन गए नेता हैं।
कर्ज ले रहा बड़ा आदमी
वापस कभी न देता है।।

पत्रकार हो महाप्रचारक,
मूढ़ बना हो जहाँ विचारक,
ऐसे देशों में घटनाएँ होंगी
सच में हृदय विदारक।
😊
खेल-खेल में जहाँ घोटाला,
लूटी तिजोरी लगा हो ताला।
कैसे रुकेगा ऐसे हाल में,
दुनियाँ भरका गड़बड़झाला।
😊
तड़ीपार जो कभी रहा था
देश भक्ति का ज्ञान दे रहा,
बेवकूफ मतदाता उसकी,
बातों पर भी कान दे रहा।।
😊

Friday, September 14, 2018

इतना अच्छा झूठ, कवि जी किससे सीखा है?

इतना अच्छा झूठ!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?
अच्छा होता अच्छे कवि की
कुछ कविताएं पढ़ देते।
नई विधा में नव शब्दों के
नूतन छंद ही गढ़ देते।
सच कह देता है आलोचक
तब जाते तुम रूठ!
कविजी किससे सीखा है?
आह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?

देशभक्ति की कविताओं में
नफरत भी फैलाते तुम।
रीतिकाल के छंदों में तो
मादकता भर लाते तुम।।
शेर, शायरी, गीतों में तब
क्यों जाती लय छूट!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कवि जी, किससे सीखा है?

कवि मंचो पर झगड़ा-झाँसा
मोल भाव कर लेते हो,
वहाँ शेर जैसा दहाड़ते,
पब्लिक को डर देते हो।
नफरत के काँटे तक में
तुम घुसा रहे हो ठूँठ!
कवि जी किससे सीखा है?

इतना अच्छा झूठ!
कविजी किससे सीखा है?
वाह, वाह की लूट!
कविजी किससे सीखा है?

Sunday, September 2, 2018

इसलिए' पतंग से पेंच आजकल वो लड़ाने लगे हैं।

अजीबोगरीब ख़्वाब आजकल मुझे आने लगे हैं।
और हकीकत में सुबहो-शाम मुझे डराने लगे हैं।।

जिन्होंने पढ़ा नहीं कभी 'सामाजिक विज्ञान' 'शिशु'
वो समाज को 'समाज की परिभाषा' सिखाने लगे हैं!

सरेआम कत्लेआम का इल्जाम था जिन पर कभी,
वो 'इंसानियत' को 'अहिंसा का पाठ' पढ़ाने लगे हैं!

राजनीतिक 'दाँव-पेंच' का शौक जबसे चढ़ा है उन्हें,
तभी' वे आजकल 'पतंग' से पेंच लड़ाने लगे हैं!

बहुत उड़ाते थे दूसरों की खिल्ली 'सोशल मीडिया' में,
अब अपने पर आई तब 'कायदे-कानून' बनाने लगे हैं।

Thursday, August 30, 2018

कबहूँ बैंक के बाबू देते दिलासा।

नरोत्तम दास की प्रसिद्ध कविता 'सुदामा चरित्र' की लयताल पर आधारित है-
सीस पगा न झगा तन में,
प्रभु जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।

लाइन लगी कि लगी न लगी,
कि, नोट बदलने की है नहि आशा।
लोग लगे वो लगे कहने-
चहुँओर है छायी घोर निराशा।
नोटबंद से ग़रीब-किसान का'
घाटा हुआ है अच्छा-ख़ासा।
पुलिश बजाती थी लठ्ठ कि,
कबहूँ बैंक के बाबू देते दिलासा।
'मन की बात' रेडियो से कहकर,
'चौकीदार' ने सबको फाँसा।
मीठे-मीठे बोल बोल अब,
वित्त मंत्री जी देते हैं झांसा।
भक्त मंडली श्राप देति 'शिशु'
जैसे देते थे ऋषि दुरवासा।
काला धन है आया नहीं,
कुल बीत गए कितने चौमासा।

Friday, August 24, 2018

इस हद तक गिर सकते लोग ऐसा सोचा नहीं कभी था।

इस हद तक गिर सकते लोग,
ऐसा सोचा नहीं कभी था!

देशप्रेम की भाषा गढ़कर,
आ जाते हैं घर पर चढ़कर,
सब झूठी खबरों को पढ़कर।
मार-पिटाई काम से बढ़कर,
ऐसा पहले नहीं कभी था...
हमने सोचा नहीं कभी था।

गाय हमारी माता कहकर,
भावनाओं में आते बहकर,
भीड़भाड़ में रह-रह रहकर,
मारो, मारो, मारो कहकर,
ऐसा देखा नहीं कभी था।
सोचा ऐसा नहीं कभी था।

इस हद तक गिर सकते लोग
ऐसा सोचा नहीं कभी था।

पूछते सवाल हैं।।

बाढ़ में,
सुखाढ़ में
मदद की दरकार थी,
तब सो रही सरकार थी,
लोग जो बेहाल हैं।
पूछते सवाल हैं।।

Tuesday, August 14, 2018

हौसला-अफजाई में पड़ा रहता है जाने क्यों?

न ही आता उसे कुछ भी, न ही कुछ काम करता है।
देखता हूँ उसे जब भी पड़ा आराम करता है।।

हकीकत को 'शिशु' समझें, मजे में हैं सभी चमचे!
पकाता है जो खाने को उसे बदनाम करता है।।

हौसला-अफजाई में पड़ा रहता है जाने क्यों?
गप्पबाजों के संग बैठा सुब्ह से शाम करता है।

तसल्ली दे रहा तुमको, तुम्हारा भी भला होगा!
कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद फ़क़त ये काम करता है।

Monday, July 9, 2018

ख्वाबों पर बंदिश लगा जीना हराम करते हैं

ख्वाबों पर बंदिश लगा जीना हराम करते हैं,
अब ऐसे शख़्स को ही लोग सलाम करते हैं।

जो देते हैं फ़िरक़ा परस्ती को अंजाम 'शिशु',
ऐसे लोगों को हम दूर से ही राम राम करते हैं।

उनको ही वेतन कम मिलता है कार्यालय में,
जो व्यक्ति वास्तव में अधिक काम करते हैं।

जिन माँ-बाप ने मेहनत से पढ़ाया है बच्चों को,
उनके बच्चे ही असल में उनका नाम करते हैं।

मँहगाई है बोलकर सत्ता में आये थे जो कभी,
अब आये दिन चीजों के महंगे दाम करते हैं।।

चार सहेलियाँ

पहली सखी बोली सुनो जी सखियों तुम,
मेरे पति मुझको प्रणाम करते हैं!
दूसरी ने पहले से कहा बड़ी जोर से,
मेरे पति सारे घर का काम करते हैं!
तीसरी ने चौथी को फ़िर आँख से इशारा किया,
मुफ़्त में ये दोनों बदनाम करती हैं.
मैंने इनकी देख ली पिटाई एक दिन सखी,
अब तक दोनों राम-राम करती हैं...

Saturday, June 9, 2018

तन्हा इतना कि उदास गलियों में, मैं भटकता ही रहा।

तन्हा इतना कि उदास गलियों में, मैं भटकता ही रहा।
वो शख़्स बेरंग मौसम की तरह था, खटकता ही रहा।

मैं  बहुत  बेकरार था समा जाने  को  उनके  पहलू में,
और वो खुदगर्ज इतना, अपने बाजू झटकता ही रहा।

एक  अरसा  बीत  गया, उनका  नाम लेते लेते  मुझे,
देखिये! लबों पर आज भी वो नाम अटकता ही रहा।

उसकी आवाज़ केलिए ऐसे ही सफर नहीं किया था!
वो बोलता शहद जैसा था, जुबां से टपकता ही रहा।

हमने  गाँव  से ज़्यादा  शहर में  काटे  हैं  दिन  'शिशु'
कमबख्त शहर है कि मेरी आंखों में खटकता ही रहा।

Sunday, May 27, 2018

कुछ अपनेपन की बात करो, कुछ सपनों की सौग़ात करो।

कुछ अपनेपन की बात करो,
कुछ सपनों की सौग़ात करो।
दिनभर की थकन मिटाने को,
आराम की प्रिय अब बात करो।।

दिन का ढलना निश्चित होगा-
तुम रात की रानी बनिये तो!
मैं ध्यान लगाकर सुनता हूँ,
तुम एक कहानी बनिये तो!

ये कविता, गीत, कहानी सब
कल्पना उड़ानों की बातें।
लेकिन तुम एक हक़ीक़त हो,
तुम हो तो दिन, तुमसे रातें।

इसलिये तुम्हारी शक्ति पर
विश्वास सभी करते हैं प्रिय।
सब कार्य पूर्ण होंगें तुमसे,
ये आश सभी करते हैं प्रिय।

Thursday, May 24, 2018

अपनी-अपनी देशभक्ति


विगत कुछ वर्षों से हम आधुनिक भारत में रह रहे हैं। क्योंकि देश अब देशभक्ति के अप्रितम दौर से गुजर रहा है। देश के कोने-कोने से लोग राष्ट्रभक्ति की अपनी-अपनी परिभाषा गढ़ रहे हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश देशभक्ति के चरम आनंद को प्राप्त करने के लिए नित नई खोज में कार्यरत है। युवा वर्ग को रोज़गार से ज़्यादा देशभक्ति का जप करने में मजा आ रहा है, ठीक वैसे जैसे जै श्रीराम कहने से मंदिर वहीं बनायेंगें की भावना जागृत हो जाती है।

सोशल मीडिया का तो कहना ही क्या, यहाँ तो उठते ही देशभक्ति के नारों की गूँज सुनाई देने लगती है। लाइक और कमेंट प्राप्त करने के लिए लोग एक दूसरे को ट्रोल (देशी भाषा में कहने का मतलब है, ग़ाली गलौज) करने से लेकर मार पिटाई, बलात्कार जैसी धमकी देना आम बात है। आमने-सामने की लड़ाई, मानसिक लड़ाई में बदल गई है। फ़ॉर्वर्डेड मैसेज आते ही वास्तविकता को सोचे समझे बिना ही बहसों का दौर शुरू हो जाता है। इसे देश भक्ति की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहेंगें?

इधर लोकतंत्र की तीसरी आँख कही जाने वाली मीडिया का भी यही हाल है। चैनल दो धड़ों में विभाजित हैं, जहां एक तरफ खबरों की चर्चा हो रही होती है वहीं दूसरे चैनल पर देशद्रोहियों की झूठी खबरों को दिखाकर टीआरपी का खेल खेला जा रहा है। खबरों की प्रतियोगिता में मसाले लगाकर जीरे की छौंक दी जाती है। ऐंकर्स लोकप्रियता के मायने में नायक और नायिकाओं को पीछे छोड़ रहे हैं और ख़बरों की ऐसी की तैसी हो रही है।

धार्मिक आंदोलनों के द्वारा सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने वाले धर्म गुरु अध्यात्म का ज्ञान देने की बजाय देशी और स्वदेशी का ज्ञान पेलकर मुनाफ़े के सौदागरों को टक्कर दे रहे हैं। उन्होंने अपना अलग एक एजेन्डा सेट कर लिया है।

लेखक, आलोचक, कवि तथा साहित्यिक गतिविधियों के ज्ञाता साहित्य से ज़्यादा देशप्रेम की कविताओं, लेखों को पत्रिकाओं द्वारा, सम्मेलनों द्वारा जनता में परोस रहे हैं। कमाल की बात है कि, इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान के वातावरण को जीवंत कर दिया है। 

यह वह दौर है जब देशद्रोही और देशप्रेमी दोनों एक दूसरे को द्रोही कह कर संबोधित कर रहे हैं। कब कौन देशद्रोही देशप्रेमी बन जाये और कब कौन देशप्रेमी देशद्रोही हो जाएगा यह लंबी बहस का विषय है। वातावरण देशप्रेम से ओतप्रेत है। सांस बाहर छोड़ो सांस अंदर लीजिये, देखिये कैसा देशप्रेम से सरोबार हो जाएंगें। प्रदूषित और जहरीली हवा में भी आपको आनंद के चरम की प्राप्ति होगी। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बलात्कार, हिंसा, अपराध इन सबका एक ही इलाज है देशभक्ति। ऐसा लगता है:- "सब मर्जों की एक दवाई, देशभक्ति है भाई।

Monday, May 21, 2018

क्योंकि औरतें तुम्हारी खेती हैं...

Prof. Shamsul Islam
 भारतीय समाज में औरत ही एक ऐसी हस्ती है, जिसका नसीब संस्कृतियों, वर्गों और धर्मों में व्यापक अंतर और भेद होने के बावजूद हर जगह एक जैसा ही रहता है। लगातार तिरस्कार और अपमान जैसे उसकी नियति है। औरत की अक्ल उसकी एड़ी में होती है, औरत झगड़े का सबसे बड़ा कारण होती है और औरत की असल दवा पिटाई है - औरत के बारे में इस तरह का सोच केवल गवार कहे जाने वालों की ही बपौती नहीं है। भारतीय संसद में कई बार ऐसा हुआ है कि, सत्ताधारी पक्ष को शर्म दिलाने कि लिए चूड़ियां पेश की गयीं। जाहिर है कि, चूड़ियां औरतों की तरह नालायक हैं। यहा पर भारतीय प्रजातंत्र की एक और विडम्बना की ओर ध्यान दिलाना अप्रासंगिक न होगा कि, यूरोपीय उदारवादी परम्परा में प्रशिक्षित भारतीय संविधान के निर्माताओं ने राष्ट्र अध्यक्ष के लिए जो नाम चुना, वह ‘राष्ट्रपति’ था। इसके दो ही अर्थ हो सकते थे, या तो यह मान कर चला गया कि, कभी कोई महिला इस पद पर विराजमान हो ही नहीं पायेगी या अगर कोई महिला इस पद को प्रहण कर भी लेती है तो उसे पुरूष रूपी पति का रूपधारण करना ही होगा। वह सुश्री या श्रीमती रहते हुए इस पद की परिभाषा से बाहर मानी जायेगी। 
 
महिलाओं के बारे में इस घटिया सोच (इसे पाशविक सोच इसलिए नहीं का जा सकता, क्योंकि, जानवरों में मादा जानवर के साथ ऐसा सुलूक होता हो, ऐसा कोई सबूत हमारे सामने नहीं है) की पैठ को समझना है, तो हमारे आस-पास घट रही दुर्घटनाओं के संबंध में इसे अच्छी तरह देखा जा सकता है। अगर सड़क पर किसी वाहन से कुचलकर कोई व्यक्ति मर जाये तो अक्सर भीड़ उस वाहन को आग लगा देती है, पड़ोस से झगड़े की आवाज आ रही हो तो पड़ोसी दखल देते हैं या पुलिस बुला देते हैं, पर दिल्ली जैसे शहर में जहाँ  औसतन रोज एक बहू जला कर मार दी जाती है, इस बात पर कोई दंगा नहीं होता। चश्मदीह गवाह अनजान बन जाते हैं। मध्यवर्गीय बस्तियों में जहाँ एक सर्वेक्षण के अनुसार 20 से 30 प्रतिशत घरों में पत्नियों को अक्सर पीटा जाता है, पड़ोसी बिल्कुल बहरे-गूँगे बने रहते हैं। सबसे शर्मनाक हाल तो पुलिस थानों का है। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण हैं कि, जब पीड़ित महिलाएँ अपना दुखडढ़ा लेकर थाने गयीं और रपट दर्ज करना चाहा, तो थाने में मौजूद पुलिस कर्मियों ने यह कहकर रपट लिखने से मना कर दिया कि, भारतीय परिवारों में औरत के साथ मारपीट तो चलती ही है, इतना ‘एडजस्ट’ तो औरत को करना ही चाहिए। 
 
महिलाओं के बारे में व्याप्त इस तरह के रूझानों का सामाजिक आधार क्या है, क्या यह कुछ लोगों के समाज विरोधी सोच का नतीजा है? क्या औरत पर ये अत्याचार इसलिए हो रहे है कि समाज का अपराधीकरण हो रहा है? सच इससे कहीं ज्यादा कड़वा, खतरनाक और चैंका देनेवाला है। महिला होने की सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि पैदा होने के साथ जीवन भर जो तिरस्कार और जुल्म उन्हें भुगतना पड़ता है, उसे हमारा समाज और हमारे समाज में पायी जानेवाली धार्मिक मुख्यधाराएँ समाज विरोधी और अमानवीय मानती ही नहीं हैं। 
 
इस संदर्भ में प्राचीन शिव पुराण और कुरान के अध्ययन से काफी बातें स्पष्ट हो जाती हैं। शिव पुराण की उमा संहिता का चैबीसवाँ अध्याय महिलाओं की प्रकृति की व्याख्या करता है। इसके अनुसार, औरतें ‘नीच प्राणी हैं’। वे ‘मंदबुद्धि होती हैं और वे हर समस्या की जड़ हैं’। औरतों की एक समस्या यह है कि ‘हर औरत शालीनता की सीमाओं को लाँघ जाती हैं। शिव पुराण में यह भी बताया गया है कि ‘औरत से ज्यादा मुनाहगार और पापों से ओतप्रोत कोई दूसरा नहीं है। हर पाप की जड़ में औरत ही होती है। औरतें आम तौर पर परम्परागत शिष्टाचार  की मर्यादा को नहीं निभाती। अगर वे अपने पतियों का साथ नहीं छोड़तीं तो उसका कारण यह है कि कोई दूसरा मर्द उन्हें घास नहीं डालता है या उन्हें अपने पतियों का भय होता है। हद तो यह है कि वे औरतें भी, जिनको पूरा सम्मान दिया जाता है, भरपूर प्यार मिलता है और जिनका खूब ध्यान रखा जाता है, कुबड़े, अंधे, अल्पबु़िद्ध और बौने मर्दों के मोह में फंस जाती हैं। क्योंकि वे खुला संभोग करती हैं, इसलिए वे ढुलमुल और पापिन होती हैं... अग्नि चाहे कितनी ही लकड़ी जला ले, संतुष्ट नहीं होती है, महासागर में कितनी भी नदिया मिल जायें, पर उसका कोई नहीं छका सकता; मौत का देवता कितने भी लोगों को मौत के घट उतार दे, फिर भी तृप्त नहीं होता और महिलाए चाहे कितने भी मर्दों के साथ संभोग करें, तृप्त नहीं हो पाती हैं।’ शिव पुराण का यह अध्याय इस निष्कर्ष पर खत्म होता है कि अगर एक ओर महिला हो और दूसरी ओर मौत का देवता, यम, तेजधार तलवार, जहर, नाग और अग्नि एक साथ भी हों, तब भी बुराई में महिला का ही पलड़ा भारी रहेगा। 
 
कुरान के अध्याय सूरतुलबकर में इस बात को स्पष्ट करके लिखा गया है कि ‘तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिए ऐसी हैं जैसे खेती की जमीन, इसलिए जिस तरह चाहो उसमें खेती करो और भविष्य का सामान अर्थात औलाद पैदा करों।’ इसी अध्याय में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि मर्दों को औरतों पर एक खास दरजा दिया गया है। एक और अध्याय, जिसका शीर्षक ‘निसा’ अर्थात औरत है, में मर्दों को यह छूट दी गयी है, ‘जो औरतें तुम्हें पसंद आयें उनसे निकाह कर लो। दो-दो, तीन-तीन, चार-चार तक कर सकते हो।’
 
इन धार्मिक स्रोतों से छन कर औरतों से सम्बन्धित जो साहित्य बाजार में उपलब्ध है, उसका थेड़ा जायजा लेना जरूरी है। इस साहित्य की जानकारी महिलाओं की कभी न खत्म होनेवाली त्रासदी के स्रोत को पहचानने में काफी मदद करेगी। यहाँ आशय उस भौंडे और अश्लील साहित्य से नहीं है जो किसी भी शहर में फुटपाथों पर रंगीन-पन्नी कागज में लिपटा खुलेआम मिलता है, बल्कि धार्मिक कहे जानेवाले उस साहित्य से है जो धार्मिक पुरस्तक विक्रेताओं द्वारा आध्यात्मिक एवं शैक्षिक उद्देश्य से छापा जाता है और जोरदार तरीकेे से बिकता है। औरतों को लेकर हिंदू और मुसलमान दोनें ही तरह के पुस्तक प्रकाशनों में किताबों  की बाढ़-सी आयी हुई है। हिंदू स्त्री के जीवन उद्धार को लेकर गीता प्रेस, गोरखपुर के पास पुस्तकों का भण्डार है, जिन्हें प्राप्त करने के लिए किसी रेलवे स्टेशन पर जाना ही काफी है।  गीता प्रेस को पुस्तकों की बिक्री के लिए देश के हर बड़े स्टेशन पर हमारे देश की धर्मनिरपेक्ष सरकार ने स्टाल उपलब्ध कराये हैं।    
 
मुसलमान औरतों का जन्नत का रास्ता दिखानेवानला साहित्य किसी भी मुस्लिम-बहुल इलाके में आसानी से हासिल किया जा सकता है। 
 
गीता प्रेस की ‘नारी शिक्षा’ 28 संस्करण, ‘गृहस्थ में कैसे रहें’  11 संस्करण,  ‘स्त्रियों के लिए कर्तव्य शिक्षा’  32 संस्करण, ‘दांपत्य जीवन का आदर्श’  7 संस्करण, और आठ सौ पृष्ठों में ‘कल्याण नारी अंक’ काबिले गौर है। ये पुस्तकें एक स्तर पर महिलाओं को निर्बल और पराधीन मानती हैं। 
 
‘कोई जोश में आकर भले ही यह न स्वीकार करे परंतु होश में आकर तो यह मानना ही पड़ेगा कि नारी देह के क्षेत्र में कभी पूर्णतः स्वाधीन नहीं हो सकती। प्रकृति ने उसके मन, प्राण और अवयवों की रचना ही ऐसी की है। जगत के अन्य क्षेत्रों में जो नारी का स्थान संकुचित या सीमित दीख पड़ता है, उसका कारण यही है कि, नारी बहु क्षेत्र व्यापी कुशल पुरूष का उत्पादन और निर्माण करने के लिए अपने एक विशिष्ट क्षेत्र में रह कर ही प्रकारांतर से सारे जगत की सेवा करती रहती है। यदि नारी अपनी इस विशिष्टता को भूल जाये तो जगत का विनाश बहुत शीघ्र होने लगे। आज यही हो रहा है।’ हनुमान पोदार ‘नारी शिक्षा’ में इसी पहलू को आगे रेखांकित करते हैं, ‘स्त्री को बाल, युवा और वृद्धावस्था में जो स्वतंत्र न रहने के लिए कहा गया है, वह इसी दृष्टि से कि उसके शरीर का नैसर्गिक संघटन ही ऐसा है कि उसे सदा एक सावधान पहरेदार की जरूरत है। यह उसका पद-गौरव है न कि पारतन्त्रय।’ क्या स्त्री को नौकरी करनी चाहिए? बिल्कुल नहीं! ‘स्त्री का हृदय कोमल होता है, अतः वह नौकरी का कष्ट, प्रताड़ना, तिरस्कार आदि नहीं सह सकती। थोड़ी ही विपरीत बात आते ही उसके आसू आ जाते हैं। अतः नौकरी, खेती, व्यापार आदि का काम पुरूषों के जिम्मे है और घर का काम स्त्रियों के जिम्मे।’ क्या बेटी को पिता की सम्पति में हिस्सा मिलना चाहिए? सवाल-जवाब के रूप में छापी गयी पुस्तिका ‘गृहस्थ में कैसे रहें’ के लेखक स्वामी रामसुख दास का जवाब इस बारें में दो टूक है, ‘हिस्सा मांगने से भाई-बहनों में लड़ाई हो सकती है, मनमुटाव होना तो मामूली बात है। वह जब अपना हिस्सा मागेगी तो भाई-बहन में खटपट हो जाये इसमें कहना ही क्या है। अतः इसमें बहनों को हमारी पुराने रिवाज पिता की सम्पत्ति में हिस्सा न लेना ही पकड़नी चाहिए, जो कि, धार्मिक और शुद्ध है। धन आदि पदार्थ कोई महत्तव की वस्तुए नहीं हैं। ये तो केवल व्यवहार के लिए ही हैं। व्यवहार भी प्रेम को महत्व देने से ही अच्छा होगा, धन को महत्व देने से नहीं। धन आदि पदार्थों का महत्त्व वर्तमान में कलह करानेवाला है और परिणाम में नर्कों में ले जानेवाला है। इसमें मनुष्यता नहीं है।’ क्या लड़के-लड़कियों को एक साथ पढ़ने की इजाजत दी जा सकती है? नहीं, क्योंकि ‘दोनों की शरीर की रचना ही कुछ ऐसी है कि उनमें एक-दूसरे को आकर्षित करने की विलक्षण शक्ति मौजूद है। नित्य समीप रह कर संयम रखना असम्भव सा है।’ इन्हीं कारणों से स्त्रियों को साधु-संन्यासी बनने से रोका गया है - ‘स्त्री का साधु-संन्यासी बनना उचित नहीं है। उसे तो घर में रह कर ही अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। वे घर में ही त्यागपूर्वक संयमपूर्वक रहें। इसी में उसकी उनकी महिमा है।’ दहेज की समस्या का समाधान भी बहुत रोचक तरीके से किया गया है। क्या दहेज लेना पाप है? उत्तर है, ‘शास्त्रों में केवल दहेज देने का विधान है, लेने का नहीं है।’ 
 
बात अभी पूरी नहीं हुई है। अगर पति मारपीट करे, दुःख दे, तो पत्नी को क्या करना चाहिए? जवाब बहुत साफ है, ‘पत्नी को तो यही समझना चाहिए कि मेरे पूर्व जन्म को कोई बदला है, ऋण है जो इस रूप् में चुकाया जा रहा है, अतः मेरे पाप ही कट रहे हैं और मैं शुद्ध हो रही हूँ। पीहरवालों को पता लगने पर वे उसे अपने घर ले जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने मारपीट के लिए अपनी कन्या थोड़े ही दी थी।’ अगर पीहरवाले खामोश रहें, तो वह क्या करे? ‘फिर तो उसे अपने पुराने कर्मों का फल भोग लेना चाहिए, इसके सिवाय बेचारी क्या कर सकती है। उसे पति की मारपीट धैर्यपूर्वक सह लेनी चाहिए। सहने से पाप कट जायेंगे और आगे सम्भव है कि पति स्नेह भी करने लगे।’ लड़की को एक और बात का भी ध्यान रखना खहिए, ‘वह अपने दुःख की बात किसी से भी न करे नहीं तो उसकी अपनी ही बेइज्जती होगी, उस पर ही आफत आयेगी, जहाँ उसे रात-दिन रहना है वहीं अशांति हा जायेगी।’ अगर इस सबके बाद भी पति त्याग कर दे तो? ‘वह स्त्री अपने पिता के घर पर रहे। पिता के घर पर रहना न हो सके तो ससुराल अथवा पीहरवालों के नजदीक किराये का कमरा लेकर रहे और मर्यादा, संयम, ब्रहाचर्यपूर्वक अपने धर्म का पालन करे, भगवान का भजन-स्मरण करे।’ अगर किसी का पति मांस-मदिरा सेवन करने से बाज न आये तो पत्नी क्या करे? ‘पति को समझाना चाहिए... अगर पति न माने तो लाचारी है पत्नी को तो अपना खान-पान शुद्ध ही रखना चाहिए।’ अगर हालात बहुत खराब हो जाये तो स्त्री पुनर्विवाह कर सकती है? ‘माता-पिता ने कन्यादान कर दिया, तो उसकी अब कन्या संज्ञा ही नहीं रही, अतः उसका पुनः दान कैसे हो सकता है? अब उसका विवाह करना तो पशुधर्म ही है।’ पर पुरूष के दूसरे विवाह करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। ‘अगर पहली स्त्री से संतान न हो तो पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए केवल संतान उत्पत्ति के लिए पुरूष शास्त्र की आज्ञानुसार दूसरा विवाह कर सकता है। और स्त्री को भी चाहिए कि वह पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए पुनर्विवाह की आज्ञा दे दे।’ स्त्री के पुनर्विवाह की इसलिए इजाजत नहीं है क्योंकि ‘स्त्री पर पितृ ऋण आदि कोई ऋण नहीं है। शारीरिक दृष्टि से देखा जाये तो स्त्री में कामशक्ति को रोकने की ताकत है, एक मनोबल है अतः स्त्री जाति को चाहिए कि वह पुनर्विवाह न करे। ब्रहाचर्य का पालन करे, संयमपूर्वक रहे।’ इस साहित्य के अनुसार गर्भपात महापाप से दुगुना पाप है। जैसे ब्रम्ह हत्या महापाप है, ऐसे ही गर्भपात भी महापाप है। अगर स्त्री की जान को खतरा है तो भी इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती - ‘जो होनेवाला है, वो तो होगा ही। स्त्री मरनेवाली होगी तो गर्भ गिरने पर भी वह मर जायेगी, यदि उसकी आयु शेष होगी तो गर्भ न गिरने पर भी वह नहीं मरेगी।’ फिर भी कोई स्त्री गर्भपात करा ले तो? ‘इसके लिए शास्त्र ने आज्ञा दी है कि उस स्त्री का सदा के लिए त्याग कर देना चाहिए।’ यदि कोई विवाहित स्त्री से बलात्कार करे और गर्भ रह जाये तो? ‘जहाँ तक बने स्त्री के लिए चुप रहना ही बढ़िया है। पति को पता लग जाये तो उसको भी चुप रहना चाहिए।’ 
 
सती प्रथा का भी इस साहित्य में जबरदस्त गुणगान है। सती की महिमा को लेकर अध्याय पर अध्याय हैं। सती क्या है, इस बारे में इन पुस्तकों के लेखकों को जरा-सा भी मुगालता नहीं है ‘जो सत्य का पालन करती है, जिसका पति के साथ दृढ़ संबंध रहता है, जो पति के मरने पर उसके साथ सती हो जाती है, वह सती है।’ अगर बात पूरी तरह समझ न आयी हो, तो यह लीजिए, ‘हिंदू शास्त्र के अनुसार सतीत्व परम पुण्य है इसलिए आज इस गये-गुजरे जमाने में भी स्वेच्छापूर्वक पति के शव को गोद में रख कर सानंद प्राण त्यागनेवाली सतियाँ हिंदू समाज में मिलती हैं।’ ‘भारतवर्ष की स्त्री जाति का गौरव उसके सतीत्व और मातृत्व में ही है। स्त्री जाति का यह गौरव भारत का गौरव है। अतः प्रत्येक भारतीय नर-नारी को इसकी रक्षा प्राणपण से करनी चाहिए।’ सती के महत्त्व का बयान करते हुए कहा गया है, ‘जो नारी अपने मृत पति का अनुसरण करती हुई शमशान की ओर प्रसन्नता से जाती है, वह पद-पद पर अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त करती है।’ सती स्त्री अपने पति को यमदूत के हाथ से छीकर स्वर्गलोक में जाती है। उस पतिव्रता देवी को देख कर यमदूत स्वयं भाग जाते हैं। 
 
मुसलमान औरतों को लेकर जो साहित्य हमारे देश में उपलब्ध है, वह इससे किसी मायने में उन्नीस नहीं है। दर्जनों उपलब्ध किताबों में से नमूने के तौर पर ‘मिया बीवी के हकूक’  लेखकः मुफती अब्दुल गनी और ‘मुसलमान बीवी’ लेखकः इदरीस अंसारी को लेने से ही साफ तस्वीर उभर कर सामने आ जायेगी। यह बात बहुत स्पष्ट करके बतायी गयी है कि ‘औरतें मर्दों की खेतिया हैं, वे इनका चाहे जैसा इस्तेमाल करें।’ मुफती साहब फरमाते हैं, ‘बस अपने आपको गुलाम माने और शौहर को आका। और अगर मान लो किसी वक्त शौहर हिंसा भी करे तो अपने अन्नदाता की हिंसा को सब्र से सहे।’ वे यह भी बताते हैं कि ‘नर्क में बहुमत औरतों का ही होगा। औरत टेढ़ी पसली से पैदा की गयी है। सीधा करने की फिक्र मत करो, वरना टूट जायेगी। और न बिल्कुल आजाद छोड़ दो, नही तो और टेढ़ी हो जायेगी।’ इस्लाम का हवाला देते हुए बताया जाता है कि ‘जिसका शौहर उससे नाखुश हो, उसकी नमाज कबूल नहीं की जायेगी। और जो औरत ऐसी हालत में मरे के उसका शौहर उससे नाराज रहा तो वह जन्नत में दाखिल न होगी।’ इदरीस अंसारी तो यहा तक फरमाते हैं कि ‘अगर पति संभोग के लिए बुलाये और बीवी मना कर दे तो फरिश्ते उस औरत को तब तक कोसेंगे जब तक वह समर्पण न कर दे।’ शौहर के साथ जिन्दगी कैसे बितानी चाहिए, इसके भी तुक्ते बताये गये हैं-‘उसकी आँख के इशारे पर चला करो। मसलन शौहर हुक्म दे कि रात भर हाथ बाँधकर खड़ी रहो तो तकलीफ गवारा करके आखरत की भलाई और सुर्खरूई हासिल करो। किसी वक्त कोई ऐसी बात न करो जो उसके मिजाज के खिलाफ हो। मसलन अगर वो दिन को रात बतला दे तो तुम भी दिन को रात कहने लगो।’ और ‘जो औरत खुशबू लगाकर मर्दों के पास से गुजरती है, ऐसी औरत बदकार है। औरत परदे में रहने की चीज है। फिर जब वह अपने घर से बेपरदा निकलती है, तो शैतान उसे मर्दों की नजर में अच्छा करके दिखला देता है और बदमाश उस औरत को खूबसूरत समझ कर उसके पीछे लग जाते हैं।’ आगे चल कर यह भी बताया जाता है कि ‘मर्द का हर झूठ लिखा जाता है, लेकिन मर्द अपनी बीवी को खुश करने के लिए बोले तो उसका कोई गुनाह उसे नहीं लगता।’ मुफती साहब की किताब में तो ‘औरत को मारने का हक’ शीर्षक से अलग से एक अध्याय ही है। ‘शौहर को जबरदस्ती करने का भी हक़ है। वह सजा के तौर पर मार भी सकता है। लेकिन इतना न मारे के निशान पड़ जाये और बहुत तकलीफ पहुँचे। वह डंडे से भी मार सकता है।’
 
समानता, न्याय और व्यक्ति की गरिमा बनाये रखने की दुहाई देनेवाले हमारे इस विशाल लोकतंत्र में औरत के बारे में इस तरह के हिंसक और उत्पीड़क विचार खुले आम फैलाये जा रहे हैं। औरत के खिलाफ प्रसारित किया जा रहा यह दर्शन मानवीय अधिकारों की अंतराष्ट्रीय घोषणा, भारतीय संविधान, भारतीय पेनल कोड और क्रिमिनल प्रोसीजर कोड की खुल्लम-खुल्ला मजाक उड़ा रहा है। औरतों के बारे में ऐसे विचारों से पुरूष प्रधान समाज के हर अंग की सहमति लगती है। जरा-जरा-सी बात पर पुस्तकों, नाटकों और कविताओं पर प्रतिबंध लगानेवाले प्रजातंत्र की इस मामले में खामोशी का आखिर कुछ मतलब तो होगा ही। गीता प्रेस की महिलाओं पर किताबें फेरीवालों द्वारा सुप्रीम कोर्ट अहाते में खुली बिकती हैं    ।
 
इस संबंध में एक और पहलू पर ध्यान देना जरूरी है। हिंदू-मुसलमान सांप्रदायिक और कठमुल्लावादी ताकतों ने हमारे देश को युद्ध का अखाड़ा बना रखा है। पर औरत के मामले में दोनों के विचारों में जबरदस्त समानता और एकता है। गीता प्रेस वाली महिलाओं की किताबों को मुस्लिम महिलाओंवाली किताबों के खाते में लिख दें या इसका उलटा हो जाये तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता। सच्चाई तो यह है कि इस विडम्बना को खत्म करने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में एक नहीं, सैकड़ों तसलीमा नसरीनों को जन्म लेना होगा। 

Friday, May 18, 2018

तुम इंसान हो, या कोई आसमानी हो।

ये जो दिखा रहे सबको कारस्तानी हो,
तुम इंसान हो, या कोई आसमानी हो।

मौज के वास्ते बनाई है फेक आईडी तुमने,
या, हक़ीक़त में किसी की जनानी हो।

मैंने कंप्यूटर में डिप्लोमा किया है 'शिशु',
बता देना जब कभी असली बनानी हो।

मुझे भी दे दो सबक शेर-ओ-शायरी का,
तुम बहुत बड़े सयाने और सयानी हो।

सीख लो कुछ काम अभी भी टाइम है,
फ़क़त बर्बाद क्यों कर रहे जवानी हो।

आसमानी: एलियन
जनानी: औरत

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से।
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से।।
देख लिया है जबसे तुमको,
बाकी कुछ भी बचा नहीं।
एक तुम्हारे सिवा दूसरा,
मुझको कोई जंचा नहीं।
अब ना शिक़वा नहीं शिकायत नज़र-नज़ारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

जिसको मन से चाहा मैंने,
उसका कुछ भी पता नहीं।
बाट देखती मंडप में थी
बोली उसकी खता नहीं।
अड़ी हुई है डोली, उठ ना रही महारों से।

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से...
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

बहुत हो गई देर अंधेरा
थककर चूर हो गया है,
चकवी से चकोर भी देखो
कितनी दूर हो गया है।
लगने लगा उसे फिर से डर चाँद सितारों से!

माझी मुझको मिला दीजिए बहती धारों से....
अब कोई भी मोह बचा ना मुझे किनारों से...

वहाँ हमारा लिखना-पढ़ना समझ लीजिये मिथ्या है।

लोकतंत्र में एक तरफ धन की होती बर्बादी है,
वहीं दूसरी तरफ आधी भूखी सोती आबादी है,
चयनित प्रत्याशी का जहाँ, मोल लगाया जाता है,
न्यायालय को सरेआम, पाखंड बताया जाता है,
जहाँ मिलावट रहित देश में दुर्लभ यारों खादी* है,
लूट मची हो खुलेआम, हर तरफ दिखे बर्बादी है,
और जहाँ पर संविधान की प्रतिदिन होती हत्या है!
वहाँ हमारा लिखना-पढ़ना समझ लीजिये मिथ्या है।

*नेताजी

Monday, May 14, 2018

धमकाते वे लोग अब जो पहले थे नेक

धमकाते वे लोग अब जो पहले थे नेक,
बाहर से सच्चे दिखें पर अंदर से फेंक।
पर अंदर से फेंक रखें लड़ने की आशा,
मर्यादा को त्याग, बोलते कड़वी भाषा।
'शिशु' कहें वे ही झगड़े-फ़साद फैलाते,
जो आपके जैसे लोगों को हैं धमकाते।

Friday, May 11, 2018

हमारी उम्र का सवाल है तो है...

तुम्हारा ख़्याल है तो है।
हमारी उम्र का सवाल है तो है।।
'शिशु' ख़ुशी में बिताए हैं तुमने दिन,
अब बिछड़ने का मलाल है तो है।
ठहाके मारकर हम भी हंसे थे कभी,
कि, अब रो-रो के बुरा हाल है तो है।
रंग का सरोकार किसी मज़हब से नहीं,
कि, कट्टरपंथी के गाल लाल हैं तो हैं।
क्या हुआ इश्क़ में निबाह न हुआ,
किसी की मजाल दिल में है तो है।

Saturday, May 5, 2018

अन्यथा वह आपका है रास्ता पड़ा।

दुश्मनी से जब कभी भी वास्ता पड़ा,
छोड़ना तब प्यार वाला रास्ता पड़ा।

रात में जब भी कलह की रोटियां खाईं,
छोड़ना तब-तब उसे है नाश्ता पड़ा।

बेंचकर घोड़े हमेशा ले रहा था नींद जो,
देखिये अब इश्क में है जागता पड़ा।

कह रहा था, बर्फ खाने से करो परहेज,
मानता था 'शिशु' नहीं, अब खाँसता पड़ा।

प्यार की यदि बात है तशरीफ़ फरमाएं,
अन्यथा वह आपका है रास्ता पड़ा।

Friday, May 4, 2018

सबसे बड़ा हितैषी

व्यवहार कुशलता की मिशाल और वाणी में मधुरता की चाशनी में डुबोकर बात करना कोई हितैषी चाचा से सीखे, पड़ोसी ने खिसियानी हंसी हंसते हुए पड़ोसी को कोहनी मारी। हितैषी चाचा मोहल्ले के सबसे ज़्यादा चलते फ़िरते पुर्जे के व्यक्ति थे। मोहल्ले के किसी भी कार्य में उनकी दिलचस्पी वैसे ही होती जैसे उनकी पत्नी दूसरे की पत्नियों में लिया करती थीं। किसी भी औरत से अपने घर का कार्य कैसे कराया जाय, यह उनके बाएं हाथ का काम था। बोलती तो ऐसे जैसे टेसू के फूल झड़ रहे हों। और हंसते हंसते ही कब आपसे काम निकलवा लें आपको खुद पता नहीं चलेगा। किसी की मजाल की उनकी मीठी बोली के चलते उनके काम को मना कर दे। ख़ैर ये तो रही इनकी बात अब आगे सुनिये हितैषी चाचा की बात।

एक रात को उन्होंने अपने पड़ोसी 'राजू' जोकि, दूसरी जाति का व्यक्ति था को घर पर बुलाया। दूसरी का इसलिए कि उनको अपनी जाति से ज्यादा दूसरी जातियों में ज्यादा दिलचस्पी थी। इसलिये उन्होंने उस व्यक्ति को कहा कि वह अपने पड़ोसी 'राम' जो राजू की जाति का नहीं है, की जमीन पर कब्ज़ा क्यों नहीं कर लेता। पहले तो राजू ने उनकी बात को मजाक में लिया क्योंकि राजू और राम में पक्की दोस्ती थी, फ़िर बार बार कहने पर और हितैषी चाचा को अपना हितैषी मानकर मुद्दे पर गंभीर हो गया और लगा चर्चा करने। बात बात में उन्होंने उसे बताया कि कैसे वह शुरुआत करेगा और फिर एक दिन कैसे जमीन पर उसका कब्जा हो जाएगा, क्योंकि गांव और मुहल्ले के सारे जमीन जायदाद के झगड़े निपटाने के कार्य हितैषी चाचा ने ले रखे थे। इसलिये निपटारे के समय ऐसा ही कोई होगा जो उनकी बात को टालेगा। हितैषी चाचा ऐसा उसे इसलिये कहने को बोल रहे थे कि वो उनको अपना सगा हितैषी समझते थे। बात आई और चली गयी। फिर एक दिन उन्होंने उसे दुबारा उकसाया कि वह जमीन पर क्यों नहीं कब्जा कर रहा है?

राजू घर आया अपनी माँ और भाई से बात की, हालांकि उनकी मां को हितैषी चाचा की बात ठीक नहीं लग रही थी, फिर भी उन्होंने बेटे का मन रखने के लिए उसकी हां में हां कर दी। अगले दिन की रात को करीब 11 बजे जब राजू का पड़ोसी राम सो गया तो राजू ने उसके घर के सामने पड़ी जमीन पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया। ईंट रात को आयीं। सीमेंट और लोहा पहले से रखा था। मिस्त्री उनका अपना रिश्तेदार था और लेबर का कार्य करने के लिए उन्होंने अपने अविवाहित भाइयों को लगा दिया।  इससे पहले कि सुबह के चार बजते, कब्जा करने भर के लिए जमीन पर निर्माण कार्य पूरा हो चुका था।

सुबह जब उनका राम जगा निर्माण कार्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उसने बिना देर किए पुलिश चौकी का रास्ता नापा। यहाँ तक कि इस बात की भनक हितैषी चाचा को भी नहीं लगी। राम के पड़ोसी राजू ने इस कार्य के लिए पुलिश को बड़ी रिश्वत दी थी। पुलिश के दो सिपाही सीधी आ धमके और राजू को पकड़ कर चौकी जाने लगे। हितैषी चाचा जैसा चाह रहे थे ठीक वैसा ही हो रहा था। पड़ोसी की माँ भागी भागी यह बताने आ धमकी। उन्होंने कहा किसी भी तरह वह उनके लड़के को पुलिश केस से बचा लें। हितैषी ने इसके लिए कुछ समय मांगा और सीधे पुलिश चौकी का रास्ता नापा।

हितैषी चाचा ने रिश्वतखोर पुलिश से बात की और सौदा तय हुआ। उन्होंने राजू की मां से 15 हज़ार रुपये मांगे, बेचारी ने जैसे तैसे रुपयों का जुगाड़ किया और हितैषी के हवाले किये। हितैषी ने राजू को छुड़ा लिया। राजू ने हितैषी चाचा के गुणगान मोहल्ले में करना शुरू ही किया था कि एक दिन राम ने राजू के पास आकर धीरे से हितैषी चाचा की पोल खोल दी।

हुआ यह था कि हितैषी चाचा ने जो पंद्रह हजार लिए थे उसमें से पुलिश को रिश्वत के तौर पर केवल पांच हज़ार दिए थे, बाकी बचे 10 हज़ार उन्होंने घर में रख लिए थे, क्योंकि रामू को ख़ुद पुलिश वाले ने बताया था कि उसे पांच हज़ार रुपये देकर राजू को छुड़वाया गया था। अब जाकर राजू को समझ आया क्यों हितैषी चाचा उसे रामू की जमीन पर कब्जा करने की सलाह दे रहे थे। ये तो रामू की भलमानसी थी कि वह राजू का दुबारा दोस्त हो गया था। हितैषी चाचा अब किसी दूसरे शिकार की तलाश में इधर उधर भटक रहे थे।

Thursday, April 26, 2018

अनकही बातें।

दर्ज किताबों में होना है, जिनका है कुछ नाम नहीं,
उनको भी होना है जिनका मुल्क में कोई काम नहीं।
बिना वजह की बहसों से, कुछ, लोगों को बांट रहे,
नक़ली बाबा, नक़ली नेता, असली चाँदी काट रहे।
ग़ुर्बत में दिन बीत रहे हैं मेहनत करने वालों के,
'शिशु' किसानों को लाले हैं आज निवालों के।
लोकसभा में लोकत्रांतिक मूल्यों का है अर्थ नहीं,
झूठ मानने वालों मानो, इसमें कोई शर्त नहीं।

Wednesday, April 25, 2018

लाज़िम है परछाईं उनके संग हो गई है...

कली और भौरों में जबसे जंग हो गई है।
तबसे गुलशन की रौनक बेरंग हो गई है।

जलकर राख हो गईं फसलें जबसे खेतों में,
बदहाली ये देख 'स्वयमं' ही दंग हो गई है।

अम्बुद, पवन और भानू में याराना को देख,
लाज़िम  है परछाईं  उनके संग हो गई है।

हथियारों की रौनक जबसे बाजारों में छाई,
तबसे  भूमंडल  में  आम  जंग हो  गई है।

सत्ता में चलता है जबसे एक व्यक्ति का सिक्का,
कोर-कमेटी  ख़ुद-सबकी-सब  भंग हो गई हैं।

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